Shri Hanuman Ji Vrat Katha | Mangalvaar Vrat Katha
हनुमानजी का मंगल प्रसाद ......
केशवदत्त नगर मे देवदत्त और अंजली नामक एक ब्राह्मण पती -पत्नी रेहते थे जे नित्य और सच्चे धर्म कार्य कि वजह से अपने गाव मे सम्मान से रेहते थे लेकिन दोनो पती पत्नी के मन मे एक दुख था कि इतनी भक्ती भाव से भगवान का पूजन करणे के बाद भी उन्हे कोई संतान नई था .इसी दुख के कारण दोनो अपने निजी जीवाण मे बहुत परेशान थे .केशवदत्त और अंजली दोनो भी हनुमानजी के भक्त थे और दोनो भी पुत्रप्राप्ती कि आशा से हर मंगलवार को हनुमानजी का व्रत करते थे .अंजली तो हर मंगलवार पुरा दिन उपवास करके शाम के समय हनुमानजी कि पूजा करणे के बाद हि अन्नग्रहण करती थी .
एक दिन ऐसेही केशवदत्त हनुमानजी कि पूजा करणे जंगल मे गये और इधर अंजली उपवास के कारण बेहोश हुई और जब वो बेहोश अवस्था मे थी तभी हनुमानजी ने अंजली को प्रसन्न हो कर आशीर्वाद दिया कि ,मे तुम दोनो कि भक्ती पर प्रसन्न हो कर तुम्हे एक सुंदर और सुयोग्य पुत्रप्राप्ती का आशीर्वाद देत हुं और हनुमानजी अदृश्य हो गये "
उसके बाद अंजली को होश आया और उसे हनुमानजी ने दिया आशीर्वाद याद आने लगा फिर उसने प्रसन्न मन से हनुमानजी कि पूजा कि. कई दिन बाद अंजली और केशवदत्त को हनुमानजी के आशीर्वाद कि वजह से एक पुत्र प्राप्त हुआ और मंगलवार व्रत का फल समजके उन्होने उसका नाम मंगलप्रसाद रख लिया .लेकिन केशवदत्त अपने मन मे अपने हि पत्नी पर शक खाने लगा और उसने अपने पुत्र मंगल प्रसाद को नहाने ले जाने के बहाणे उसे एक कुवे मे फेक दिया और पत्नी को कहा कि वो मेरे साथ आया हि नही .लेकिन थोडी देर के बाद खुद मंगल प्रसाद अपने पैरो पे चलते हुए वापस आके देख कर केशवदत्त बहोत हैराण रहा .ठीक उसी रात केशवदत्त के सपने मे क्रोधीत होके हनुमानजी ने कहा कि तुम अपने पत्नी पे शक करके गलती कर रहे हो क्योंकी वो पुत्र मेरा हि आशीर्वाद था .फिर केशवद्त्त को अपने गलती का एहसास हो गया और उसने सब कुछ सच सच अपने पत्नी को बता दिया और उसासे माफी मांगने लगा और पत्नी ने भी उसे बडे दिल से माफ कर दिया ..
उस दिन के बाद तीनो बडे आनंद के साथ रेहने लगे इसी तरह मंगलवार कि व्रत पुरी भक्ती के साथ करणे के कारण उनको हनुमानजी का मंगल प्रसाद मिल गया .शरीर के सभी रक्त , विकार और कष्ट इसी मंगलवार कि व्रत से दूर होते है ऐसा अनुभव लाखो भक्तो ने लिया है ...
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