Name / नाम - Mohini paul

Country / देश - india

Gender - Female

Subject / विषय - Sai came in person & took dakshina of two coins from me;those two coins symbolised :SHRADDHA & SABURI

Introduction / परिचय - Friends i would like to share how 'Sai' is the mother of all.How Sai helped me to overcome the most difficult & hardest phase of my life.

Your Experience / तुम्हारा अनुभव - 

२०१२ से मेरे जीवन में जैसे दुःख क काले बदल छा चुके थे.मैं इतनी ज्यादा जीवन से हर चुकी थी कि बस मैंने सोच लिया था कि आब बस मेरे साई का ही सहारा है.मैं रोते तड़पते शिर्डी के लिए रवाना हो गयी थी.जनरल कम्पार्टमेंट में लोगो के धक्के खाते हुए (ये बात जुलाई २०१२ कि है).

जब मैं शिर्डी पहुची मैंने वह भी सिर्फ आंसू बहाये, बाबा कि समाधी चढ़कर जब मैंने उनपर फूल चढ़ाया तब मन में एक ही बात आ रही थी "बाबा सब यहाँ ख़ुशी के आंसू बहा रहे है पैर मैं ही इतनी बड़ी अभागन क्यूँ हूँ जो दुःख के आंसू बहा रही हो " ?


उस समय जब मैं शिर्डी से वापस लौटने क लिए रवाना हो रही थी तब वह पैर एक साधू ने अचानक आकर मुझसे कहा कि "बेटी तुम्हे श्रद्धा और सबुरी रखनी होगी अपने साई पैर, साई जो भी करता है उन सब में तुम्हारी ही भलाई है..पैर अपने साई पैर उनके प्रेम पैर दृढ विश्वास रखना.श्रद्धा और सबुरी ही तुम्हे इस मुश्किल घडी में सम्भाले रखेगा ".मैंने उसी समय ये तय किया कि अबसे जो भी हर दिन सबसे मुझसे दान या भिक्षा मांगने आएंगे मैं उससे साई समझ कर दान दिया करुँगी और अगर मेरी भक्ति सच्ची है तो किसी ऐसे को दान नहीं मिल पाएगी मुझसे जो धोखेबाज़ हो या फ्रॉड हो.

इस प्रथा को मैंने ६ महीनो तक जरी रखा.बाबा कि महिमा देखिये चाहे मैं जहा कही भी रहती थी कोई न कोई मुझसे भिक्षा मांगे आ ही जाता था जब कि मेरा घर ऐसी जगह पैर है जहा भिखारी जल्द नहीं मिलते है.
देखते देखते नया साल आया २०१३.१९ जनुअरी २०१३ मैं कोल्कता गयी थी अपनी बेहेन कि शादी में और मैं शादी ख़तम होने के बाद कोल्कता रेलवे स्टेशन पैर अपने ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रही थी.तब तक मैंने किसी को भिक्षा नहीं दी थी.मैं अपने जीवन में निराश तो थी ही इसलिए चुप चाप एक कोने में खामोश बैठी हुई थी.उसी समय एक बच्चा भिक्षा मांगने आया .उससे देखके साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वो एक जरुरतमंद नहीं है बल्कि एक फ्रॉड है. वो सबसे भिक्षा मांग रहा था तब मैंने मन ही मन कहा "साई इतने दिनों से मैंने हर दिन किसी जरुरत मंद को भिक्षा दी है पैर मैं इस लड़के को भिक्षा नहीं देना चाहती." चमत्कार देखिये..उस लड़के ने सबसे भिक्षा मांगी पैर मुझसे ही नहीं माँगा.मुझे समाज नहीं आया कि ऐसा कैसे हो गया.मैं कुछ समझ पति उतने मेय मैंने अचानक देखा कि मेरे सामने एक फकीर खड़े है साफा चोला पहले सफीद रंग के और मेरी ओर एक कटोरी फैला के मुस्कुरा रहे है.मेरे हर्ष का पारावार न रहा.मुझे बस साई कि तस्वीर याद आ रही थी और मेरे मननमे कुछ नहीं था.मैंने उनकी तरफ देखते हुए अपने पर्स में हाथ डाला और जो भी हाट आया उन्हें दे दिया.उन्होंने मेरे सर पैर हाथ फेरते हुए कहा "अल्लाह सब सही करेगा". मैं बस उन्हें देखती ही रही एबीएस देखती ही रेह गयी और मेरे आँखों से आंसू बहने लगे.

उनके प्रस्थान करने क बाद मुझे ये ज्ञात हुआ कि मैं हर दिन १० रूपए देती थी पैर साई को तो मैंने बस २ ही रूपए दिए.इसी निराशा से मैंने बस यूँही साई सत्चरित्र खोला और जो पन्ना खुला उसपर लिखा था : तुमने जो मुझे २ सिक्को कि दक्षिणा दी है वो है श्रद्धा और सबुरी जिसे तुमने सदैव मुझपर बनाये रखा.मुझे इतनी ख़ुशी हुए दोस्तों कि मैं क्या बताऊ.जिसके साथ साई है उसके साथ समस्त संसार है.

ॐ साई राम 

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